Why ATLAS CYCLES Failed

Atlas Said in a notice 

"The company had been passing through a financial crisis for several years and had exhausted all its funds to keep the factory afloat. But now, there are no funds left. We are facing difficulty in arranging funds for our day-to-day operations. We are also unable to buy raw materials. In these conditions, the management is not in a position to operate the factory."


The fruitful journey of Atlas Cycles commenced in 1951 and since then the company has set their foot in more than 50 countries across the world. Atlas Cycles has three facilities in Sahibabad, Sonepat and Gwalior with a daily average of producing 15,000 units from the first two manufacturing plants.
 
Initially, Janki Das Kapur, who laid the foundation stone of Atlas cycles, used to import spare parts from international markets. Later, he promised himself to deliver quality bicycles to his countrymen at reasonable price and hence, started Atlas Cycles in Sonepat.
 
Atlas Cycles has been enjoying  the honour of being the largest bicycle maker in the world. Atlas R&D centre focuses on manufacturing several models such as bicycles, city bikes, mountain bikes, kids bikes and sports bikes. In the first year of its operations, Atlas manufactured 12,000 cycles. To meet the high demand of steel tube, Atlas also set-up steel tube facility in Gurgaon.



Atlas Cycle Started in 1951 by JankiDas Kapoor (Haryana Sonipath)
Aim-To Make Cycle at Affordable Price

He Started the Cycle Plant in 25 Acre land and Within few Months The Cycle was a Great Hit in Indian markets.
People Started recommending The Cycle to other Relatives and Friends
Atlas Was The Second name for Quality and the Price was also Affordable
Jankidas Kapoor Was a Simple Person and His aim was Building Sturdy Sturdy Cycles In Simple look
In 1958 The Atlas Cycle moved to World Level
In 1965 it Became the Largest Cycle Brand of India 

--Now Read The Story--



हिंदी में

हम बात कर रहे है सन 1951 की भारत को अभी  आजाद हुए 4 साल ही  हुए थे अभी हर भारतीय अपने  सपनों को साकार करने के लिए खुद अपने पैरों पर चलना सीख रहा था अभी अभी तो भारत गुलामी की जंजीरों से बाहर आया था भारत बड़े सपने देख रहा था उन सपनों को पूरा करने के लिए और दुनिया से लोहा लेने के लिए भारत को चाहिए थी रफ्तार और वह रफ्तार भारत को मिली एटलस साइकिल के रूप में


25 एकड़ की जमीन पर हरियाणा के सोनीपत में जानकीदास कपूर ने नींव रखी थी एटलस साइकिल कि
उनका सपना अपने देशवासियों को कम दाम में मजबूत साइकिल प्रदान करने का था 
उस समय साइकिल ही एकमात्र  ऐसा साधन था जिससे कि सभी व्यापार और आवागमन  किये जा सकते थे . हमारे देश को आगे ले जाने के लिए साइकिल ही ऐसा साधन था जिस से हम सारे काम कर सकते थे इसी बात को ध्यान में रखते हुए जानकीदास कपूर ने मजबूत और सस्ते दाम की साइकिल बनाने की शुरुआत कर दी थी, पहले ही साल उनकी कंपनी ने 12000 साइकिल बना कर  बाजार में लोगो के सामने पेश कर दिया.

लोगों को एटलस साइकिल बहुत पसंद आई  हर भारतीय की जुबान पर सिर्फ एटलस साइकिल का नाम आने लगा 
एटलस साइकिल बिक्री के सारे रिकॉर्ड भी तोड़ने लगी  और एक समय ऐसा भी आया जब विदेश से भी अटलस साइकिल की डिमांड आने लगी और सन
1958 में एटलस  ने विदेश में कदम रखा और देखते ही देखते 50 से ज्यादा  देशो में अपनी साइकिल बेचने लगी .

सन 1965 आते-आते एटलस  भारत की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता बन गई थी अब हर भारतीय सिर्फ अटलस साइकिल से चलना सीख गया था अटलस साइकिल भी अपने वादों पर खूब खरा उतर रही थी  इसकी मजबूती और दाम दोनों भारतीयों को बहुत पसंद आ रहे थे एटलस साइकिल अपनी मजबूती के कारण  हर काम के लिए उपयोग की जाने लगी थी किसी को कही जाना  हो या किसी को कुछ ले जाना हो हर कोई एटलस साइकिल का उपयोग अच्छे से  कर रहा था.

भारत में एटलस  साइकिल की इतनी ज्यादा डिमांड हो गई थी कि एक प्लांट से काम नहीं चल पा रहा था साईकिल के खरीददार लम्बा इंतजार करने के बाद  खरीद पा रहे थे ,क्यूँकी  प्लाट में बनने वाली हर साइकिल महीने भर के अंदर ही बिक जा रही थी अब एटलस साइकिल को कुछ बड़ा सोचना था कुछ ऐसा सोचना था कि जिससे कि लोगों की  डिमांड को पूरी किया जा सके हर भारतीय को उनकी जरूरत की साइकिल आराम से दी जा सके इसके लिए एटलस साइकिल ने अन्य राज्यों में भी अपने प्लांट को खोलने की बात सोची और बहुत जल्द ही अटलस ने अन्य राज्यों में भी अपने प्लांट खोल दिए

अन्य राज्यों में प्लांट खुल जाने के कारण अब एटलस साइकिल लोगों की डिमांड पूरी कर पा रही थी, अन्य राज्यों के और अलग-अलग जगहों के लोगों ने एटलस साइकिल को बहुत प्यार दिया लोगों को एटलस साइकिल हर जगह गांव शहर कस्बे में  पसंद आने लगी थी हर कोई सिर्फ एटलस साइकिल का नाम लेता था किसी को अगर नई साइकिल खरीदनी  होती थी तो उसके बड़े बुजुर्ग उसको सिर्फ एटलस  साइकिल लेने के लिए ही बोलते थे एटलस साइकिल लोगों के दिलों पर राज कर रही थी हर भारतीय सिर्फ एटलस साइकिल की बात कर रहा था
साल 1978 में एटलस ने स्पोर्ट्स साइकिल लांच करके इतिहास रच दिया था 

सन 1982 में भारत में हुए एशियन गेम्स में एटलस साइकिल ने दुनिया के सभी साइकिल कंपनियों  को पीछे छोड़ते हुए साइकिल पार्टनर के रूप में एशियन गेम्स में हिस्सेदारी ले ली और यहीं से एटलस साइकिल ने दुनिया में भी  अपने नाम का लोहा मनवा दिया

अब  तक एटलस  साइकिल जोरो शोरो  से  काम कर रही थी लोगों की डिमांड बहुत ज्यादा होते हुए भी उनकी डिमांड को पूरा किया जा रहा था , लोगो की  डिमांड को पूरा करने के लिए रॉ मैटेरियल की जरूरत भी बढ़ गई थी उस जरूरत को पूरा करने के लिए और विदेशों से सामान न मगाना  पड़े इसके लिए एटलस  ने अपनी खुद की मिल  “स्टील ट्यूब मिल्स”  गुड़गांव में चालू की .

 

सन 1965 में भारत की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता के रूप में उभरने के बाद एटलस  साइकिल के मालिक जानकीदास कपूर 1967 में भगवान को प्यारे हो गए उनके दिए गए गाइडेंस को उनकी कंपनी के लोगों ने खूब अच्छे से उपयोग किया और उसी नक्शे कदम पर चलते हुए अटलस साइकिल लोगों के दिलों पर राज करती रही लोगों को खूब पसंद आती रही ,अटलस साइकिल की डिमांड में कोई कमी नहीं आई क्योंकि उनके टीम मेंबर्स ने लोगों की भावनाओं का पूरा ख्याल रखा, अटलस साइकिल ने लोगों के दिलों पर सन् 2012 तक भरपूर राज किया.

जानकीदास कपूर के बेटे जयदेव कपूर की मृत्यु साल 2012 में होने   के बाद एटलस साइकिल की बिक्री धीरे-धीरे कम होने लगी अब इनकी प्रॉफिट मार्जिन भी बहुत कम होने लगी थी  लोगों को अब धीरे-धीरे नौकरियों से निकाला जाने लगा था ग्राहकों  के हितों का और  यहां काम करने वाले लोगों का ध्यान बहुत कम रखा जा रहा था एटलस साइकिल में अंदर ही अंदर कुछ गड़बड़ हो रहा था एटलस  अब बाजार से उधार भी ले रही थी एटलस  को मजबूरी में अपने शेयर गिरवी रखकर पैसे उठाने पड़े कंपनी  अब हर जगह से फंसती जा रही थी ,पैसे का उपयोग तो हर जगह  कर रही थी लेकिन वहां से पैसे बन नहीं पा रहे थे .

एटलस साइकिल अपनी गुणवत्ता पर भी ध्यान नहीं दे पा रही थी,अब लोगों का एटलस साइकिल से भरोसा उठता जा रहा था वही  साइकिल की बिक्री बहुत  कम होने के कारन   कंपनी  अपने दाम भी सही नहीं रख पा रही थी अन्य कंपनियां भी मार्केट में आ चुकी थी जो एटलस साइकिल से सस्ते दाम  में भी काफी फीचर्स के साथ साइकिल देने लगी थी एटलस कंपनी  में कुछ अंदरूनी गड़बड़ी चल रही थी धीरे-धीरे एटलस  साइकिल के प्लांट बंद होने लगे शेयर बाजार में भी लोगों ने एटलस साइकिल के शेयर को जमकर लताड़ा और इसका  शेयर 700 से गिरकर सिर्फ 30 से 35 पर आ गया.

और फिर आया सन 2020 जिसने अपने साथ लाया कोरोना को और कोरोना आने के कारण एटलस साइकिल के जले पर नमक गिर गया.अब एटलस साइकिल को मजबूरी में अपना आखिरी प्लांट भी 3 जून सन 2020 को बंद करना पड़ा आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 3 जून को विश्व साइकिल दिवस भी मनाया जाता है तो विडंबना देखिए एक ऐसी साइकिल कंपनी जिसने सबके दिलों पर लम्बे समय तक  राज किया हो उसको साइकिल दिवस के दिन ही अपने आखिरी कारखाने  को बंद करना पड़ा.
दोस्तों इस कहानी से हमें सीख लेनी चाहिए कि समय कभी एक जैसा नहीं होता है यह सब के लिए बदलता है एटलस साइकिल जिसने हमेशा हमेशा भारत के लोगों के दिलों पर राज किया है आज उसको अपने आखिरी प्लांट को भी बंद करना पड़ा है लोगों की नौकरियां वहां से हमेशा के लिए जा चुकी हैं 
जिन्होंने अपनी सेवाएं एटलस  साइकिल को कई सालों से दी है  वो लोग भी अब मजबूर हैं दूसरी जगह नौकरी ढूंढने के लिए 

हमने भी एटलस  साइकिल का बहुत उपयोग किया है और हमें यकीन है की आपने भी एटलस साइकिल जरूर चलाई  होगी  अगर आपने नहीं तो आपके घर में बड़े बुजुर्गों ने तो एटलस साइकिल का उपयोग जरूर ही किया होगा हमारी बहुत ही यादें जुड़ी हैं एटलस साइकिल के साथ हमें यकीन है आप की भी यादें जरूर जुड़ी होंगी
एटलस साइकिल ने हमारा हर सुख दुख में बहुत साथ दिया है लेकिन आज जो इस कंपनी के साथ हुआ वह बहुत ही दर्दनाक है
हम बात करेंगे इसके पीछे जुड़े हुए पैसे और इसके दिवालिया होने के असली और अंदरूनी कारणों की  अपनी अगली वीडियो में जिसमें हम आपको बताएंगे कि कैसे शुरू हुआ इसमें पैसे का हेरफेर क्यों इस कंपनी को बाजार से बहुत बड़े लोन लेने पड़े और क्यों यह कंपनी दिवालिया होने पर मजबूर हो गई

Agle Article ka Intzaar kijiyega....

 


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